गुलामी में शेर शिकार करना भूल जाते

Kanha Masram
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🏹 📚✍️ *गोटूल लायब्रेरी*✍️📚
(समाज में शिक्षा के लिए अभियान)

*गुलामी में शेर शिकार करना भूल जाते हैं*

कुछ नहीं कर सकते वो ज़िंदगी में
जो गुलाम होते हैं
कुछ कर भी लें तो उनके नहीं
उनके मालिक के नाम होते हैं।।

गुलामी में रह कर शेर को जब
बिना मेहनत मुफ्त का खाने की
आदत हो जाए, तो वो आज़ाद
होकर भी शिकार नहीं कर पाता।।

गुलामी की जंजीरों ने ऐसे
लोगों को जकड़ रखा है
छूटना चाहें भी तो मुफ़्त खाने के
लालच में नहीं छूट पाते।।

उससे बहस करने का क्या फायदा
जो मानसिक रूप से गुलाम है
उसको तो वही अच्छा लगेगा न
जिसको वो हर रोज़ ठोकता सलाम है।।

जो गुलाम बनकर गुलामी नहीं कर सकते वो आज़ादी के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देते

*लोग ज़्यादा से ज़्यादा पैसे कमाने के लिए एक दूसरे का आर्थिक रूप से “शिकार” करते हैं।*

यह शिकार जंगलों या गांवों में नहीं, शहरों में मिलते हैं। परन्तु अन्य लोग अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और हमारे ज्ञान की कमी का भरपुर फायदा उठा कर हमारे लोगों का जमकर शिकार करते हैं । जैसे कम मजदूरी, हमारे जर-जमीन को लुटना और अत्याचार के चरम स्तर तक हमारा शोषण कर शिकार करते हैं ‌। इस प्रकार के शिकार का हमारे अधिकांश लोगों को अहसास भी नहीं होता है क्योंकि हमारी ऐसी ही ब्रांडिंग की जा चुकी है।

शहरों में पैसा ज़्यादा होने के कई कारण हैं, जिनमें रोज़गार के अवसर, आर्थिक गतिविधियाँ और बेहतर बुनियादी ढाँचे का होना शामिल है, जो ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक अवसर प्रदान करते हैं परन्तु हम इस स्पर्धा से बाहर है। इस दिशा में हमारे अधिकांश लोगों का दिमाग काम नहीं कर पाता है ।

हमारे लोगों को मालुम ही नहीं है कि भविष्य का निर्माण कैसे किया जाये? दुनिया में क्या हो रहा है? इसकी जानकारी से दूर है और इसे हासिल भी नहीं करना चाहते हैं क्योंकि हमारे इस स्थिति की ब्रांडिंग अन्यों द्वारा हमारी स्थिति (आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति ) को ध्यान में रख कर बनाते हैं और उसका लाभ उठाते हैं अर्थात शिकार करते है।

हम अक्सर संस्कृति की बात करते हैं और कहते हैं कि शहरों में जाने से यह समाप्त हो जाती है। शायद यह राजनीतिक अर्थों में उपयोगी हो सकता है और हमारे शहरवासियों सगाजनों अन्य समाज और अन्य धर्मों के बीच सुरक्षा की भावनाओं और स्थिति में रहना सुरक्षित समझते है( क्योंकि हमारी स्थिति कमजोर जिसमें स्थायित्वता व भव्यता तथा गौरवता की कमी है) परंतु इसका संदर्भ में अन्य सामाजिक समुह से ले सकते जिनकी संख्या हमसे और पुरे देश में बहुत ही निम्न हैं । जैसे -जैन समाज , सिक्ख समाज, पारसी समाज आदि ऐसे समाज है जो शहरों में भी आर्थिक सम्पन्नता और स्तरीय शिक्षा के साथ अपने रीति-रिवाज,परम्पराओं और संस्कृति को संरक्षित करते हुए अपनी मजबूत स्थिति का प्रदर्शन करते हैं।

*♟️संक्षिप्त में हमें अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने हेतु शिकार करना आना चाहिए अन्यथा हम खरगोशों 🐇 की नीतियों के अनुसार शेर की भूख मिटाने प्रतिदिन उपलब्ध होते रहेंगे।*

🙏 *सेवा सेवा,सेवा जोहार*

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