“शहीद क्रांतिकारी योद्धा टंट्या भील का वास्तविक संघर्ष”- ▶️शुरुआत में “टंट्या भील” की विद्रोही प्रवृत्ति को उनपर हुए अन्याय और अत्याचार से जोड़कर देखा गया, उन्हें अंग्रेजों, प्रस्थापित शरणार्थी आर्य परजीवी जमींदारों, साहुकारों, सामंतों द्वारा डकैत, लूटेरा, चोर इस प्रकार की बदनामी की उपाधि संज्ञा दी गई। क्योंकि यह जमीन पर लगान कर के लूटेरे लोग “टंट्या भील” के खिलाफ में ब्रिटिश हुकूमत की पुलिस की मदद मांगना चाहते थे इसलिए “टंट्या भील” को आरोपित किया गया। “टंट्या भील” की माता ‘जिवनी’ भी इस अन्याय और जुल्म शोषण का शिकार हुई थी, जिनकी मृत्यु #भूख से हुई थी। “टंट्या भील” की जमीन जमींदार, साहुकार “शिवा पाटिल” के पास गीरवी थी जिसपर जबरन ब्याज लगाकर उसे कब्जा कर वसूली के रुप में खेत की संपूर्ण कमाई फसल जैसी शर्त, अनुबंध ने मानो पुरे आदिवासी ट्राइब्स किसानों के जिंदा रहने के मुल स्रोत संसाधनों खेती किसानी फसल निर्भर जीवन को नेस्तनाबूद कर दिया था। ▶️वह निरंतर श्रम मेहनत करने के बावजूद पेटभर खाना नहीं खा सकते थे ऐसी अमानवीय कृत्य, दमनकारी स्थिति ने ही विद्रोही बागी, लड़ाका “टंट्या भील” का निर्माण किया। प्रारंभ में”टंट्या भील” ने कोर्ट में फ़रियाद लगाई, परंतु उच्च वर्णीय प्रस्थापित जमींदार साहुकार की वहां गहरी पैठ होने से वे केस हार गए, सभी तरह से हताश होने के बाद में उन्होंने जमींदार साहुकार को लूटना और क्षेत्र के गरीब किसानों को वह धनराशि, वह जमींदार साहुकारों द्वारा लूटे गए जेवर व कर लगान के रुप में लूटे गए अनाज वितरण करने की प्रथा ने “टंट्या भील” को “महाविद्रोही क्रांतिकारी योद्धा टंट्या भील” बनाया और गरीब किसान, मजदूर, आदिवासियों पर उच्च वर्णीय जमींदार साहुकारों के अन्याय के खिलाफ में #Self_Court (खुद की अदालत) बनाकर उन्हें सजा देकर सतायों हुओं को न्याय दिलाने के कारनामों ने “टंट्या भील” को गरीबों और पीड़ितों, वंचित किसानों, आदिवासियों का Robinhood मसीहा (God) बना दिया, यह बात निमाड़ से लेकर संपूर्ण सतपुड़ा और सह्याद्री के पहाड़ो और जंगलों तक वास्तव के रूप में प्रचारित थी। यह केवल प्रचार नहीं, बल्कि इन क्षेत्रों में”टंट्या भील” की समांतर कबिलाई सामाजिक सांस्कृतिक स्वशासी स्वायत्तता आधारित सत्ता संचालन नियंत्रण व्यवस्थापन शुरू हो गया था। सब जगह “टंट्या भील” अपने संघर्ष के लिए तैयार किए युद्ध कौशल प्रशिक्षित साथियों की मदद से इस “स्वशासी स्वायत्त व्यवस्था” का सफल संचालन शुरू कर दिया था। इसी वजह से पैसेवाले (पूंजीपति साहुकार, जमींदार) और #धर्म_पंडितों में “टंट्या भील” के नाम की दहशत निर्माण हो चुकी थी। अब यह स्वशासी स्वायत्तता आधारित सामाजिक संघर्ष प्रस्थापित शरणार्थी परजीवियों जमींदार साहुकारों, धर्म पंडितों और वतनदारों के खिलाफ में ‘देशज सामूहिक सामाजिक विद्रोह’ का रुप धारण कर लिया था। ▶️अब यह लड़ाई हजारों किलोमीटर के क्षेत्र में लाखों हेक्टेयर जमीन की मुक्ति के सामाजिक संघर्ष में परिवर्तित हो गई थी, “मालिक टंट्या भील” को किसान-गरीब-मजदूर पीड़ित व सताये हुए आदिवासियों का सीधा सामाजिक समर्थन मिल गया था। अब उच्च वर्णीय प्रस्थापित साहुकार जमींदार वतनदार धर्म पंडित ‘अंग्रेजी हुकूमत और होलकर रियासत’ के पास टंट्या भील के खिलाफ शिकायत और संयुक्त रुप से टंट्या भील और क्षेत्र की जनता के खिलाफ सीधे संघर्ष का मुर्त रुप देने में साहुकार जमींदार वतनदार धर्म पंडित कामयाब हो गए। ▶️ ‘अंग्रेजी सेना और होलकर सैनिक’ अब संयुक्त रुप से इन शोषक साहुकार जमींदार वतनदार धर्म पंडितों के सुरक्षा में “टंट्या भील” के खिलाफ/ आदिवासियों के खिलाफ कार्यवाही करने की योजना बनाई यह बात अब “इंग्लैंड के हाऊस याने ब्रिटिश बर्मिंघम पैलेस कॉमन राजघराने” के चीफ कमिश्नर के माध्यम से भेजी गई। सालों से आदिवासियों की जमीन पर से उन्हें अधिकारहीन बनाने, जबरन जमीन पर कब्जा, साहुकारों के मार्फत जमीन पर कब्जे की निरंतरता प्रकिया ने हजारों जमींदारों, वतनदारों को जन्म दे दिया, लाखों हेक्टेयर जमीन सतपुड़ा से सह्याद्री तक यानी नर्मदा नदी से तापी, गोदावरी वर्तमान में महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के पहाड़ी जंगलों से घीरे क्षेत्रों से आदिवासियों को बेदघल कर दिया था। उनकी जिंदगी मानों जानवरों जैसी और और संपूर्ण गुलामों जैसी अवस्था में भरी थी। ऐसे समय “क्रांतिकारी कबिलाई लड़ाका टंट्या भील” का ‘कबिलाई सामूहिक सामाजिक विद्रोह’ ने इस देश की ‘आंतरिक राष्ट्रीय शत्रु’ और बाहरी ब्रिटिशों के खिलाफ संयुक्त संघर्ष ने इसे “राष्ट्रीय संघर्ष” का रुप दे दिया था। “क्रांतिकारी योद्धा टंट्या भील” के विरोधक और न्याय समर्थक गतिविधि ने किसान-मजदूर-मजबूर व शोषित पीड़ित आदिवासियों में उन्हें समाज का GOD (Guardian, Owner, Driver) पालक, मालक, चालक बना दिया। ▶️ खुद मालिक टंट्या भील उनके संघर्ष के मुख्य समन्वयक नियंत्रक व्यवस्थापक रणनीतिकार ‘रेंगा कोरकूं’ ‘छोटा बारेला’ सहित अपने सभी सहयोगियों को “मालिक” नाम से संबोधित करते थे। साथ अब पुरी जनता आपस में “मालिक” संबोधन को अपना चुकी थी, इसे (Social Ownership Under Uncultural Social Structure) भी कहा। ▶️यह झगड़ा “(State Ownership) राज्य के अधिकर” के खिलाफ “(Social Ownership) समाज की मालकीयत” के बीच के बीच को मूल संघर्ष का रुप धारण कर लिया था। आदिवासियों के जंगल क्षेत्रों में विद्रोह से ‘ब्रिटिश सेना और होलकर सैनिक’ साथ ही जमींदार साहुकार, पूंजीपति, धर्म पंडित वतनदारों के लिए वहां टिके रहना नामुमकिन हो गया था, यहीं वह समय हैं जब पहाड़ी जंगली दुर्गम क्षेत्रों के आदिवासी गणकबिलों, गणकबिलाई जातियों उपजातियों ट्राइब्स के खिलाफ “(Criminal Tribal Bill) जन्मजात गुनाहगार कानून” पास कर दिया गया। कहीं कहीं इन्हें देखकर गोली मारने, शूट करने, गांव और जंगलों से बाहर रखने, इन्हें वसाहती क्षेत्रों से दूर रखने, समाज के मुख्य प्रवाह से दूर रखने, इनपर बगैर सूचना के क़ानूनी कार्यवाही इतना ही नहीं इस कानून को “Heriditary Act” (वंशानुगत वंशीय कानून) जिसके तहत गुनाहगार का बच्चा, बच्ची भी गुनाहगार, याने पैदाइशी गुनाहगार की संज्ञा नामविशेषण जोड़ दिया गया यानि आदिवासी ट्राइब्स पैदा होते ही गुनाहगार की श्रेणी में दर्ज कर लिये जाते थे। यहीं अमानवीय संज्ञा, बदनामी का लेबल “अंग्रेजों के खिलाफ में विद्रोह” का, “जमींदारों-साहुकारों-पूंजीपतियों-धर्म पंडितों के खिलाफ में विद्रोह” करने की मुख्य सजा थी। ▶️ वर्तमान महाराष्ट्र में ‘Nomadic Tribe’s’ नामक घुमंतू कबिला (जनजाति) भी इसका हिस्सा बन गए, वास्तव में यहीं विद्रोही देशज आदिवासी ट्राइब्स “स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक वारिस” हैं और यह अपने आप में विश्व में किसी विशिष्ट देशज गणकबिलों गणकबिलाई जातियों उपजातियों पर किये गये “अमानवीयतावादी एकतरफा आदेश” था। अफसोस इस बात का हैं कि 👉 इस देश के प्रस्थापित उच्च वर्णीय भी अंग्रेजों के साथ में थे उन्होंने इस “क्रिमिनल ट्रायबल बिल” में पंडितों पुजारियों की जो इन क्षेत्रों में रहते थे उन्हें दूर रखने की सिफारिश भी ब्रिटेन में की थी, यह इस देश का दुर्भाग्य है। जिसे “Black History काला इतिहास” कहना भी अपर्याप्त होगा।🙄 ▶️जो वर्तमान में आदिवासियों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ा रहें हैं उनसे पूछें कि 👉 ▶️जल, ▶️जंगल ▶️ जमीन के देशज सामाजिक स्वायत्तता के संघर्ष में उनके पुरखों पूर्वजों ने अंग्रेजों का साथ क्यों दिया ❓🤔 इसलिए क्योंकि वे उस समय भी अपने दुश्मन अंग्रेजों को नहीं, आदिवासियों को ही समझते थे।😏 ▶️और कुछ अपने आर्यों की वर्णवादी मानसिकता से ग्रसित दुःखी आत्माएं हैं जो संगठनवाद, जमातवाद, क्षेत्रवाद, वंशवाद, पुरखावाद अवसरवाद मसीहावाद का का पाठ पढ़ा रहे हैं और ठेकेदारी प्रथा ला रखे हैं उनसे पूछों कि 👉 “मालिक टंट्या भील का संघर्ष” केवल एक गांव, एक जाति, एक परिवार एक वंश के लिए ही था या फिर पुरे समाज के सामाजिक सांस्कृतिक अस्तित्व, अस्मिता, आत्मसम्मान और जिंदा रहने के मुल स्रोत संसाधनों ▶️ जल ▶️ जंगल ▶️ जमीन पर सामूहिक सामाजिक मालकीयत का संघर्ष था ❓🤔 ▶️ जननायक टंट्या भील का आंदोलन इंडिया में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ में और इंडिया के प्रस्थापित शरणार्थी जमींदार, सूदखोर साहुकार, पूंजीपति धर्म पंडित और वतनदारों के खिलाफ में “संयुक्त सामाजिक विद्रोह और सामूहिक सामाजिक संघर्ष” ही था। ▶️एक तरफ आदिवासियों, ट्राइब्स पर (Criminal Tribal Bill) गुनाहगार जमात कानून उस पर Hariditary Act (वंशानुगत वंशीय कानून) का लबादा यानी इस देश के वास्तविक भू-मालक, मुल बीज, मुल बाशिंदों को जन्म से ही गुनाहगार बनाने में मनुवादियों ने अंग्रेजों की मदद से बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली थी, यह एक कामयाब शरणार्थी षड़यंत्र था, आदिवासियों ट्राइब्स किसान कबिलाईयों को कानून और सरकार की नजर में गुनाहगार Criminal बनाने का।😏 ▶️ भोले भाले आदिवासियों ट्राइब्स गणकबिलाई जातियों उपजातियों को इस कठीन सजा और वेदना से-180 वर्ष तक जुझना पड़ा, संघर्ष करना पड़ा हैं और कई पीढ़ियों, लाखों क्रांतिकारी योद्धाओं को खुद को न्योछावर करना पड़ा हैं, जब आदिवासी जमींदारों, साहुकारों धर्म पंडितों के खिलाफ अपने सामाजिक अधिकार व सांस्कृतिक अस्मिता आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रहे थे, तब उन्हें “जन्मजात गुनाहगार” वह भी जन्म से ही पीढ़ी दर पीढ़ी तक ऐसा षड़यंत्र देश के मुल मालिकों के खिलाफ जुल्म, अन्याय और अत्याचार करने वालों ने ही अंग्रेजों की मदद से आदिवासियों की ख़िलाफत की, याने अपने जुल्म की बदस्तूर जारी रखने के लिए आप अंग्रेजों की मदद लेते थे और आदिवासियों को खत्म करने के लिए अंग्रेजों को मदद करते थे, यहीं चालबाजी षड़यंत्रकारी धुर्त इतिहास, हैं इस देश का।😏😏 ▶️ हजारों सालों से आदिवासियों, ट्राइब्स के साथ में अमानवतावादी व्यवहार, कृत्य ने उन्हें, वानर, जंगली, भूत-पिशाच, दक्ष- दस्यु, इत्यादि अमानवीय संज्ञा नामविशेषण से पुकारा गया, उन्होंने आदिवासियों के नरसंहार को कर्तव्य नहीं, परम कर्तव्य और खुद के सेनापतियों को वीर योद्धा, ईश्वर, भगवान देव संरक्षक इत्यादि उपाधियां दी, याने 👉 आदिवासियों के वध को खुली मान्यता, ऐसे षड़यंत्रकारी इस इंडिजन ट्राइब्स किसान कबिलाई पुरखा पूर्वज भू-भाग टेरीटरी इंडियन महाद्वीप इंडिया (भारत) के भूमिपुत्र कैसे हो सकते हैं ❓🤔 जहां “सिंधु सभ्यता की सेना ▶️आयाल ▶️मायाल ▶️बिला ▶️लटारु ▶️जटारू ▶️हिरबा ▶️महादेव ▶️गौरा ▶️भीलट ▶️बाबदेव ▶️वाघदेव ▶️सिंगा ▶️बोंगा ▶️कोया▶️ लिंगों ▶️जंगों ▶️ अड़ा पेन ▶️भिल्लई ▶️मुंडा ▶️नागा ▶️उरांव▶️माया▶️मोहेजोदारों हड़पा की भी सांस्कृतिक प्राकृतिक मुल मानवीय देशज सभ्यता तमाम बाहरी सभ्यता समूहों के आगमन पूर्व से वास करती हैं। “महाविद्रोही, महानायक टंट्या भील” को ऐसे ही नहीं The Legend land of the God of justice in the World (दुनिया में जमीन के लिए न्याय का वास्तविक भगवान) कहा गया🙄 👇😊👇 निम्न तस्वीर को देखकर, उसमें अंग्रेजी स्कॉलर Dr. Alfred G Barrs On England Spleen द्वारा फरवरी-21, 1891 में लिखित आर्टिकल को पढ़िए, टंट्या भील का खुद का न्यायालय, न्याय करने का तरीका इतना खतरनाक था कि जो गद्दारी करता था उसका नाक अथवा कान काट देता था, चाहें वह आदिवासी समाज का क्यों न हो ❓🙄 उसी से डरकर अंग्रेजों ने भारत में “Atemporary Judicial system”(तात्कालिक न्याय व्यवस्था) यानी कानून, कोर्ट कचहरी का निर्माण किया था।✊🪓✊🪓हुल जोहार ✊🪓✊🪓 ✍️👉