सिंधु जल संधि का इतिहास सिंधु जल
संधि,जिसे 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया गया था, दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का एक महत्वपूर्ण समझौता है।
इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों का पानी बांटा गया: भारत को सतलुज, ब्यास और रावी, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का नियंत्रण मिला। यह संधि दशकों तक दोनों देशों के बीच सहयोग का प्रतीक रही, लेकिन हाल के वर्षों में सीमा पार आतंकवाद ने इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए।निलंबन का कारणभारत का यह फैसला हाल के आतंकी हमलों, खासकर जम्मू-कश्मीर में हुए हमलों के बाद लिया गया।
सरकार का मानना है कि जब पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, तब पानी जैसे महत्वपूर्ण संसाधन को साझा करना उचित नहीं है। धामी के बयान ने स्पष्ट किया कि भारत अब आतंकवाद और सहयोग को एक साथ बर्दाश्त नहीं करेगा। यह कदम भारत की ओर से एक मजबूत संदेश है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रियापाकिस्तान ने इस निलंबन को “युद्ध की कार्रवाई” करार दिया है। वहां की सरकार और मीडिया में इसे लेकर भारी बेचैनी देखी जा रही है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि सिंधु नदी प्रणाली पर बहुत हद तक निर्भर है, और संधि का निलंबन उनके लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।
पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की धमकी दी है, लेकिन भारत का कहना है कि यह उसका संप्रभु निर्णय है।प्रभाव और संभावनाएंसंधि के निलंबन से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है। भारत के लिए यह फैसला अपनी नदियों के पानी का बेहतर उपयोग करने का अवसर देता है, खासकर जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में। हालांकि, इससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ने की आशंका भी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से विश्व बैंक, इस स्थिति पर नजर रख रहा है।
क्या है आगे की राह?यह फैसला भारत के लिए एक रणनीतिक कदम है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। भारत को अपनी जल परियोजनाओं को तेजी से लागू करना होगा ताकि पानी का उपयोग प्रभावी ढंग से हो सके। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय दबाव को संभालने के लिए कूटनीतिक प्रयास भी जरूरी होंगे। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास इस स्थिति से निपटने के लिए सीमित विकल्प हैं, और उसे अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
निष्कर्षसिंधु जल संधि का निलंबन भारत के बदलते रुख और आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का प्रतीक है। यह फैसला न केवल दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति को भी नया आकार दे सकता है। हमें उम्मीद है कि यह कदम शांति और सुरक्षा की दिशा में एक मजबूत संदेश देगा।