Waqf (Amendment) Act 2025

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    सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट:

    वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 की वैधता पर हाई-वोल्टेज सुनवाईवक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट, में जोरदार कानूनी जंग छिड़ी हुई है।

    इस नए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दर्जनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

    इन याचिकाओं में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है। 16 अप्रैल, 2025 को शुरू हुई इस सुनवाई में कोर्ट ने अभी तक कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया है,

    और आज, 17 अप्रैल, 2025 को दोपहर 2 बजे यह सुनवाई फिर से शुरू होगी। आइए, इस मामले को डिटेल में समझते हैं कि आखिर क्या है वक्फ एक्ट, संशोधन के बाद क्या बदलाव आए, और क्यों हो रहा है इतना विवाद?

    वक्फ एक्ट और वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 का बैकग्राउंडवक्फ एक्ट, 1995 भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियमन के लिए बनाया गया था। वक्फ का मतलब है ऐसी संपत्ति जो धार्मिक, शैक्षिक, या सामाजिक कार्यों के लिए मुस्लिम समुदाय द्वारा समर्पित की जाती है। ये संपत्तियां मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, या अन्य सामुदायिक उपयोग के लिए होती हैं।

    वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों का प्रबंधन करता है।2025 में केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 को संसद में पेश किया, जिसे लोकसभा और राज्यसभा में बहस के बाद 4 अप्रैल, 2025 को पास कर लिया गया। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस पर हस्ताक्षर किए, और यह कानून बन गया। इस संशोधन में कई बड़े बदलाव किए गए, जो विवाद का कारण बने। कुछ प्रमुख बदलाव

    हैं:वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति: नए कानून में केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है।

    वक्फ संपत्ति के पंजीकरण और सर्वे: पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन और सर्वे की प्रक्रिया को और सख्त किया गया।‘वक्फ बाय यूजर’ की मान्यता खत्म

    : पहले कोई संपत्ति लंबे समय तक वक्फ के रूप में इस्तेमाल होने पर उसे वक्फ मान लिया जाता था, लेकिन अब यह प्रावधान हटा दिया गया।

    वक्फ बनाने की शर्तें: कानून कहता है कि केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है जो कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो।

    जिलाधिकारियों को अतिरिक्त शक्तियां: वक्फ बोर्ड के कुछ फैसलों को लागू करने के लिए जिलाधिकारियों को अधिकार दिए गए हैं।इन बदलावों को लेकर केंद्र सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाएगा और उनके दुरुपयोग को रोकेगा। लेकिन विपक्षी दल और कई संगठन इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और मौलिक अधिकारों पर हमला बता रहे हैं।

    सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं: कौन-कौन शामिल?वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 100 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें से 10 याचिकाओं पर 16 अप्रैल को सुनवाई शुरू हुई, और बाकी को बाद में जोड़ा जा सकता है। इन याचिकाओं में कानून को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है। कुछ प्रमुख याचिकाकर्ता हैं:

    असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM): ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक), अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है। उन्होंने संसद में भी इस बिल का कड़ा विरोध किया था और प्रतीकात्मक रूप से इसकी कॉपी फाड़ दी थी।

    अमानतुल्लाह खान (AAP विधायक): दिल्ली के आप विधायक ने भी कानून को मुस्लिम विरोधी बताया।

    मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी (कांग्रेस सांसद): कांग्रेस ने इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन बताया।

    जमीयत उलेमा-ए-हिंद: इस्लामिक संगठन ने कहा कि यह कानून वक्फ की धार्मिक स्वायत्तता को खत्म करता है।

    थलापति विजय (तमिल अभिनेता और TVK नेता): साउथ के सुपरस्टार ने भी इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की है।अन्य:

    राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, और कई गैर-सरकारी संगठन जैसे एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स भी याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं।इसके अलावा, कुछ याचिकाएं वक्फ एक्ट, 1995 को ही रद्द करने की मांग करती हैं। अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उत्तर प्रदेश की पारुल खेड़ा ने दावा किया है कि मूल वक्फ कानून गैर-मुस्लिमों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

    सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: अब तक क्या हुआ?सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार, और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय बेंच कर रही है। 16 अप्रैल को हुई सुनवाई में कई अहम बिंदुओं पर चर्चा हुई:

    याचिकाकर्ताओं की दलीलें:वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक संस्थाओं को अपने मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार कैसे तय कर सकती है कि कोई व्यक्ति 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा है या नहीं?

    सिब्बल ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना धार्मिक स्वायत्तता पर हमला है। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में गैर-हिंदुओं को शामिल करने की अनुमति देगी?याचिकाकर्ताओं ने ‘वक्फ बाय यूजर’ की मान्यता खत्म करने को गलत ठहराया, क्योंकि इससे कई पुरानी वक्फ संपत्तियां प्रभावित होंगी।

    केंद्र सरकार का पक्ष:केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर कर कहा कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले उसका पक्ष सुना जाए।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि कानून का मकसद वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाना है, न कि धार्मिक स्वायत्तता को कम करना।

    कोर्ट का रुख:सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कानून पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई है।कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए अंतरिम आदेश का सुझाव दिया, लेकिन केंद्र के विरोध के बाद इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया।कोर्ट ने केंद्र से याचिकाओं पर जवाब मांगा है और कहा कि वह दो विकल्पों पर विचार कर रहा है:

    या तो मामले को हाई कोर्ट में भेजा जाए, या सुप्रीम कोर्ट खुद सुनवाई जारी रखे।कोर्ट ने देशभर में कानून के विरोध में हो रही हिंसा पर चिंता जताई और कहा कि हिंसा को दबाव बनाने का हथियार नहीं बनाना चाहिए।कानून के समर्थन में कौन?हालांकि ज्यादातर याचिकाएं कानून के खिलाफ हैं, कुछ पक्ष इसके समर्थन में भी हैं:सात राज्य सरकारें:

    मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, असम, और छत्तीसगढ़ ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर कर कहा कि यह कानून पारदर्शी और न्यायसंगत है।आदिवासी संगठन:

    कुछ आदिवासी संगठनों ने दावा किया कि यह कानून उनकी जमीनों की रक्षा करेगा।आज की सुनवाई से क्या उम्मीद?

    17 अप्रैल, 2025 को दोपहर 2 बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिर शुरू होगी। कोर्ट इस बात पर विचार कर सकता है कि क्या कानून पर अंतरिम रोक लगाई जाए या सुनवाई को आगे बढ़ाया जाए। याचिकाकर्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन जैसे वरिष्ठ वकील अपनी दलीलें और मजबूत करेंगे, जबकि केंद्र सरकार अपने पक्ष को और स्पष्ट करेगी। यह सुनवाई इसलिए भी अहम है क्योंकि इसका फैसला न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को प्रभावित करेगा, बल्कि धार्मिक स्वायत्तता और संवैधानिक अधिकारों पर भी बड़ा असर डालेगा।क्यों है इतना विवाद?वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 को लेकर विवाद की कई वजहें हैं:

    धार्मिक स्वायत्तता का सवाल: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में सरकारी दखल को बढ़ाता है।

    मुस्लिम समुदाय में आशंका: कई लोग मानते हैं कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को कमजोर करने और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को सीमित करने की कोशिश है।राजनीतिक कोण: विपक्षी दल इसे बीजेपी सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी नीति का हिस्सा बता रहे हैं, जबकि सरकार इसे सुधार का कदम कह रही है।

    वक्फ संपत्तियों का आकार
    :

    कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, वक्फ के तहत 39 लाख एकड़ जमीन है, जो इसे देश में तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक बनाती है। इसकी वजह से इस कानून का असर बहुत बड़ा हो सकता है।आगे क्या?सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का नतीजा इस बात पर निर्भर करेगा कि याचिकाकर्ता कानून को संविधान के खिलाफ साबित कर पाते हैं या नहीं। अगर कोर्ट कानून पर रोक लगाता है, तो यह विपक्ष और मुस्लिम संगठनों के लिए बड़ी जीत होगी।

    वहीं, अगर कानून को बरकरार रखा गया, तो केंद्र सरकार इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करेगी।इस बीच, असदुद्दीन ओवैसी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) जैसे संगठन 19 अप्रैल को हैदराबाद में एक विरोध रैली की योजना बना रहे हैं, जिसमें तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कई मुस्लिम संगठन शामिल होंगे।

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